सुनाऊँ अब किसे हाले दिल अपना

( Sunaoon ab kise haal e dil apna ) 

 

ख़ुशी के ज़ीस्त में साये नहीं है !
गमों के क्यों ढ़लते लम्हे नहीं है

उदासी में कटे दिन इसलिये ही
यहाँ दिन भी मगर अच्छे नहीं है

सुनाऊँ अब किसे हाले दिल अपना
यहाँ वो अब मगर रहते नहीं है

परायी देखते है अब नज़र से
रहें रिश्ते मगर गहरे नहीं है

करे है यूं किनारा मुफलिसी हूँ
कि अब अपने रहें अपने नहीं है

मुसीबत में दिया है साथ जिनका
वहीं अब बात भी करते नहीं है

उसे कैसे मिलने जाऊं भला अब
हटे आज़म अभी पहरे नहीं है

 

शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )

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