हमको कभी
हमको कभी
हमको कभी ख़ुशियों का भी मंज़र नहीं मिलता
दिल को मिले सुकूँ वो मुकद्दर नहीं मिलता
शिद्दत से जो चाहे वही दिलबर नहीं मिलता
जो ज़ख़्म मेरे सी दे रफ़ूगर नहीं मिलता
रहने को ग़रीबों को कभी घर नहीं मिलता
दे दे उन्हें जो छाँव वो छप्पर नहीं मिलता
जो राह दिखाते थे सदा ज़ीस्त में हमको
अब ऐसे बुज़ुर्गों सा भी रहबर नहीं मिलता
तामीर करूँ मैं अपनी मुहब्बत का महल भी
ऐसा कोई नायाब तो पत्थर नहीं मिलता
जो दूर करे तीरगी रौशन करे घर को
हमको कोई भी मिह्र -ए-अनवर नहीं मिलता
दिल जीत ले शायर जो सभी का ही सुख़न में
अब मीर सा कोई भी सुख़नवर नहीं मिलता
जो अम्न की जागीर हमें जीत के ला दे
ऐसा जहाँ में मीर-ए-लश्कर नहीं मिलता
देते सभी हैं ज़ख़्म हमें रूप बदल कर
अहबाब में दुश्मन में भी अंतर नहीं मिलता

कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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