हुंकार की कवितायेँ | Hunkar ki Kavitayen
हुंकार की कवितायेँ
23. रिश्ते
बहुत मजबूत रिश्ते थे, कि कुछ कमजोर लोगो से।
निभाते तो भला कैसे, कि कुछ मजबूर लोगो से।
कशक थी दिल मे जो मेरे ,बताते तो भला कैसे।
बडे बेबस थे हम जुड के, कुछ मशहूर लोगो से।
बडे ही सख्त लहजे मे, हमे इल्जाम दे कर के।
मोहब्बत को मेरे मजबूरियो का नाम दे कर के ।
बडे बेबाक रिश्ते थे कि कुछ बेदर्द लोगो से।
निभाते तो भला कैसे कि कुछ बेशर्म लोगो से।
मना ले हम भला दिल, बेबसी से आज कहता है।
नही जुडना कभी उससे, जो दर्द ए आम रहता है।
लिखा हुंकार ने मन की ,जो उसके साथ गुजरा है।
ये कविता नाम का बस है, यही हालात गुजरा है।
बहुत मजबूत रिश्ते है कि कुछ मशहूर लोग से।
निभाते तो भला कैसे कि उन मगरूर लोगो से ।
22. तेरे रंग में
मेरा क्या मैं जल की धारा, तेरे रंग में रंग लूंगा।
जिधर ले चलो जिस ढलान पे,तेरे संग ही चल दूँगा।
मेरा रंग नही है कोई, रूप नही कोई तुझसा,
जिसने जैसे देखा मुझको,मुझसा कोई और नही दूजा।
गंगा में मिल पावन हो गयी, मदिरा मे मिल मादक।
नयनों से गिर खारी हो गयी, साधू से मिल साधक।
फूलों से मिल इत्र बनी, हुंकार हृदय में चाहत।
देख मुझे तुम सी ही हूँ मै, देती तुमको राहत।
21. राधा का संगम
राधा का संगम ना होगा, मीरा भी तरसी है।
इकतरफा ये प्रेम पतित है, क्यो इसमें उलझी है।
कोई कुछ भी कहे मगर, पीडा इसमे ज्यादा है,
शेर हृदय की मान सजनिया,प्रेम मे क्यो पगली है।
20. इश्क़ में
इश्क़ में निगाहों को मिलती है बस बारिशें।
फिर भी दिल को है बस आपकी ख्वाहिशें।
कोई आंसू कोई शबनम कोई मोती कहता है,
शेर नयन से बहता पानी,बिछडी हुई मोहब्बतें।
19. जब मै दर्द लिखता हूँ
कि जब मै दर्द लिखता हूँ,तो पढते है सभी दिल सें।
कोई ढाढंस नही देता, सभी वाह वाहह कहते है।
कोई शब्दों को गिनता है, कोई भावों में उलझा है,
मेरे जख्मों से है अन्जान सब, वाह वाह कहते है।
18. बदल गये हो आप
बदल गये हो आप तो, हम भी कहाँ पुराने रहे ।
ना खुद ही आप आने से रहे,ना हम ही बुलाने से रहे।
वर्षो गुजर गए है यहाँ, अब रौशन नही सितारे रहे,
चेहरे पे लकीरें है बढी, जुल्फों भी खिंजाबी से रहे।
17. तुम्हें पाने की तमन्ना
बस तुम्हें पाने की तमन्ना नही रही।
मोहब्बत तो आज भी मुझे तुमसे ही है।
ये शायद मौसम का असर है यादों पे,
वर्ना मेरी ये सांसे धडकन तुमसे ही है।
16. ठुकराया हमने
ठुकराया हमने बहुतों को, तेरी चाहतों के कारण।
हम में जो दूरियां रही,उनकी बददुआओ के कारण।
जितना ही दूर उनसे रहा, उतना ही तुमसे दूर हूँ,
दिल की तडप ये बढती रही,मेरी ख्वाहिशों के कारण।
15. परिस्थिति विकट बहुत हैं
परिस्थिति विकट बहुत हैं, जीवन में अब द्वंद मचा है।
चयन अमृत का है पर विष लेकर, हर हाथ खड़ा है।
14. हृदय की चाहत
चुप रहने से अच्छा था की, ना ही कर देते।
शेर हृदय की चाहत को, ठुकरा के चल देते।
घुट -घुट के जीने से अच्छा, था कि मर जाते।
कोई तो मिल ही जाता,जो कह के तुम चल देते।
13. छोटा सा दर्द
बहुत छोटा सा ही दर्द था जब तुमसे हुआ था प्यार।
लम्बी सी दास्तान है अब,तुमसे मिलने का इन्तज़ार।
शीशा गिरा जब जमींन पर, तब टुकडे हुए हजार।
हर टुकडे में अश्क़ तेरा, देखा है मैने बार -बार।
12. आप आओ तो
आप आओ तो मगर और कभी,
दिल पे दस्तक दे देखो और कभी।
प्यार उम्मीदों से कम निकला तो,
दे देना मुझको सजा ए मौत वही।
11. मधुवन की पहचान
मधुवन की पहचान नही, यह विष कंटक का उपवन है।
कैसे किसको पहचाने यह, विष युक्त रक्त का बन्धन है।
चेहरे पर भी इक चेहरा जो, परत दर परत ढका हुआ,
कौरव कुल में जन्म लिया, विकर्ण सा जीवन निर्जन है।
10. दिल में जो दास्तांन
दिल में जो दास्तांन थी,कह ना सका कभी।
पन्नों पे लिख दिया है, जैसा था हूबहू।
9. चाहत के गलियारों पे
छन करके आती है रौशनी, चाहत के गलियारों पे।
जैसे मन मे कमल खिला हो,सरिता के दो राहों पे।
अन्जाने दो नयन मिले जब,प्रेम प्रवास बने उपवन,
सारा ही जग थिरक रहा हो, जैसे की हर चौराहे पे।
8. अहंकार में डूबा मन
अहंकार में डूबा मन ना, खुद की गलती देख सके।
खुद में इतना डूबा कि, दूजें का सच ना देख सके।
भाग्य विधाता नही है तू तो,क्यों इतना अभिमान करे।
अहंकार बातों से झलके, फिर भी ना कुछ देख सके।
7. प्यार में
सारा दिन प्यार में वो सुलगता रहा।
रातभर प्यार के वो संग जलता रहा।
सुबह होने को है अब धुंआ उठ रहा।
राख ही बच गया प्यार सोता रहा।
6. रावण मन
रम्भा की स्वच्छंद कला पर,रावण मन बहका था।
नल कुबेर की भार्या को,बल पूर्वक वो कुचला था।
श्रापित था रावण इस कारण,माता सीता बची रही,
मर्यादित से ढके अंग के कारण,रावण मन न बहका था।
5. लाज बचा लो
द्रोपदी चींख रही थी भरी सभा में लाज बचा लो।
नग्न हो जाएगी मर्यादा, नारी की लाज बचा लो।
छद्म टूटा भारत में चर्चा है अब, फटी जींस का,
नग्नता उतरी है सडको पे,भारत की लाज बचा लो।
4. प्यार का भूखा
मैं पतित प्यार का भूखा, दर दर हरदम भटक रहा हूँ।
मन ना जाने किसमें उलझा, क्यों मै भटक रहा हूँ।
संसार मोह को मन से त्याग, नही पाया मै भी पापी,
अतृप्त हृदय में प्यास लिए,मै आज भी भटक रहा हूँ।
3. मत विचलित कर मन को अपने
मत विचलित कर मन को अपने, कर्म पे ध्यान लगाए जा।
दुनिया की बातों को छोड कर , तू अपनी राह बनाए जा।
कर्मरथि की जय जय होती, उसका ही सम्मान रहा,
इसीलिए तू छोड़ प्रपंच अब, नित नये राह बनाए जा।
2. बावडी नयना
बावडी नयना हुए तुम, डूब ले इक बार।
डूब करके साँवरे, तू आ भी जा इस पार।
प्रीत तुम हो प्रियतमा मै,तुम ही हो आधार।
शब्द का माधुर्य हो, जिसमें छलकता प्यार।
1. इश्क़ मजबूरी
इश्क़ मजबूरी बनकर, मेरा उसको झांक रहा है।
खडा है राह पे ऐसे, जैसे उसको तांक रहा है।
निकल कर आ जाए शायद,अब भी पतली राहों से,
शेर मन भटक रहा हरपल ही, रस्ता तांक रहा है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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अहंकार में डूबा मन ना, खुद की गलती देख सके।
खुद में इतना डूबा कि, दूजें का सच ना देख सके।
भाग्य विधाता नही है तू तो,क्यों इतना अभिमान करे।
अहंकार बातों से झलके, फिर भी ना कुछ देख सके।
वाह!!!
सभी रचनाएं बहुत सुन्दर..