इंसानियत का रथ | Insaniyat ka Rath
इंसानियत का रथ
( Insaniyat ka rath )
शर्मिंदा किस कदर है इंसानियत का रथ
बढ़ता ही जा रहा है हैवानियत का रथ
वाइज़ बिछा रहे हैं बस अपनी गोटियाँ
रोकेगा कौन देखो शैतानियत का रथ
हो जायें बंद अब यह फिरक़ापरस्तियां
आयेगा शहर में कब इंसानियत का रथ
निकला हूँ फूल लेके उस की तलाश में
शायद क़ुबूल कर ले रूमानियत का रथ
देता है अम्न का यह पैग़ाम इस तरह
चमकेगा भीड़ में भी वहदानियत का रथ
अब सांस सांस तेरी महकेंगी ख़ुशबुएं
लेकर के आ गया हूँ रूहानियत का रथ
हर शख़्स जल रहा है यहाँ अपनी आग में
साग़र जहां को चाहिए रूहानियत का रथ
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
रूमानियत -प्रएम से भरपूर, रोमांटिक
वहदानियत -एकता एकत्व,
रूहानियत -आध्यात्मिक