गणतंत्र दिवस | Republic Day
गणतंत्र दिवस
( Republic Day )
( 2 )
प्यारा भारत देश हमारा,मन से खुशी मनाऍंगे।
आया है गणतंत्र दिवस यह, विजय ध्वजा लहराऍंगे।
भारत धरती कहती सबसे,बालक मेरे न्यारे हो।
मेरी रक्षा खातिर तुमने, अपना सब कुछ वारे हो।
युगों-युगों तक नाम तुम्हारा,धुन आजादी गाऍंगे।
आया है गणतंत्र दिवस यह,विजय ध्वजा लहराऍंगे।
भारत माॅ॑ के वीर सिपाही,गढ़ते नव प्रतिमानों को।
नमन करें हम वीर भगत सिंह,शूली चढ़े जवानों को।
करके याद शहीद शहादत ,श्रद्धा सुमन चढ़ाऍंगे।
आया है गणतंत्र दिवस यह, विजय ध्वजा लहराऍंगे।
करे तरक्की देश हमारा, सबसे प्रेमिल नाता है।
भाई चारा भाव भरा मन,हर दिल जन गण गाता है।
नीला अंबर उड़े तिरंगा, शांति दूत बन जाऍंगे।
आया है गणतंत्र दिवस यह, विजय ध्वजा लहराऍंगे।।
कवयित्री: दीपिका दीप रुखमांगद
जिला बैतूल
( मध्यप्रदेश )
( 1 )
राम लखन की रामायण का, हर पद सभी को याद है।
फिर क्यों अपनी वसुंधरा पर, होता रहता विवाद है ।।
🎖️
क्षण-क्षण वसुधा पर मँडराते, अब विनाश के बादल हैं ।
एक दूसरे से लड़ने को ,पढ़े लिखे भी पागल हैं ।
दुराग्रहों के धनुषवाण से, मन भीतर तक घायल है।
शतरंजी चालों में उलझा ,लगता समय जल्लाद है ।।
राम लखन की—-
🥉
कहीं सुलगता काश्मीर तो, कहीं असम के छाले हैं।
देश द्रोहियों ने छुप-छुप कर,नाग विषैले पाले हैं ।
इनके कृत्यों से जननी के , चुभे हदय पर भाले हैं
मंदिर-मस्जिद से भी उठता ,
क्यों सरफिरा उन्माद है।।
राम लखन की—–
🥈
नगर ग्राम सीमाओं पर है ,विस्फोटों का धुआँ-धुआँ।
भय घातों से काँप रहा है ,मानवता का रुआँ-रुआँ ।
कुछ दूरी पर गहरी खाई , कुछ दूरी पर खुदा कुआँ।
भ्रष्ट आचरण दुराचार से , फैला यह सब विषाद है।।
राम लखन की—–
🏅
राम लखन की भाँति जवानों ,निशाचरों का नाश करो।
भय शंकित जनमानस में, निज पौरुष से विश्वास भरो ।
सीनों में अंगारे भर कर ,साग़र अब संत्रास हरो ।
इस युग का अब वीर सपूतों ,
हर ओर यही निनाद है ।।
राम लखन की—
फिर क्यों अपनी—