इंसानियत की राह पर | Insaniyat ki Raah Par
इंसानियत की राह पर
( Insaniyat ki Raah Par )
इंसानियत की राह पर इंसान
जब चलने लगेगा !
हृदय में तम से घिरा जो नूर है
स्वयं ही दिखने लगेगा!!
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे चर्च में
तुमको नहीं दिख पाएगा!
दीन दुखी निबलों विकलों की
सेवा में वो मिल जाएगा !!
मंत्र, जप- तप, ध्यान, अजान से
कुछ नहीं हो पाएगा !
जब तलक निर्मल न हो उर कुछ
हासिल नहीं कर पाएगा!
मोह माया छोड़ कर सम दृष्टि
जब आ जाएगी !
स्वकर्म सारे पूर्ण कर संतुष्टि
जब मिल जाएगी !!
‘जिज्ञासु’ जन मोक्ष का ध्रुव सत्य
यह सब जानलो !
जीवन मृत्यु के दुष्चक्र से मुक्ति
तब मिलेगी मानलो !!
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”
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