जब मर्यादाएं बोझ लगे | Jab Maryadaye
जब मर्यादाएं बोझ लगे
( Jab maryadaye bojh lage )
जब मर्यादाएं बोझ लगे, जरा अंतर्मन में झांको तुम।
क्या हमको संस्कार मिले थे, संस्कृति में ताको तुम।
मर्यादा पालक रामजी, मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए।
मातपिता की आज्ञा लेकर, लक्ष्मण संग वन धाए।
मर्यादा में रहकर सीताजी, सतीव्रता नारी कहलाई।
सावित्री यमराज से, पति के प्राण वापस ला पाई।
मतिमंध मनचलों ने यहां, मर्यादाएं सारी ढहा डाली।
संस्कारों की गरिमा को थोथी, बातें कह बहा डाली।
मर्यादा सिंधु गर तोड़े तो, भारी विनाश आ जाता है।
सूर्य देव मर्यादा में रह, जग आलोकित कर पाता है।
मर्यादा में पवन चले तब, सुरभित पुरवाई होती है।
आंधी तूफां रूप धरे तो, दुनिया की तबाही होती है।
मर्यादा में सरिताएं बहती, इठलाती बलखाती सी।
टूट जाए बांध सब्र का, बिखरे अथाह जलराशि सी।
जल गई सोने की सारी लंका, अनीति अनाचारों से।
राजपाट कुर्सियां हुई गायब, कुछ स्वार्थी सरदारों से।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )