बिन चिता के ही चिता की सी तपन | Chita par Kavita
बिन चिता के ही चिता की सी तपन
( Bin chita ke hi chita ki si tapan )
बिन चिता के ही चिता की सी तपन हो गई।
जल उठी देह सारी आग सी अगन हो गई।
बिन पीर के ही हमें पीर की सी जलन हो गई।
शब्द बाण ऐसे चले शंका सारी शमन हो गई।
बिन नीर के ही जो पानी की सी शीतल हो गई।
सोने की सी साख थी जो घट के पीतल हो गई।
बिन चाहत के ही चाहत की सी चाहत हो गई।
दर्द दे गया जुल्मी इतना प्रीत में आहत हो गई।
बिन बंसी के ही बंसी की सी मधुर तान हो गई।
रूठ गया जब कन्हैया राधा परेशान सी हो गई।
बिन कविता के कविता की सी रंगत खो गई।
झूम उठे श्रोता सारे मंच पे लंबी पंगत हो गई।
पी गई विष प्याला मीरा कृष्ण लगन में खो गई।
कान्हा कान्हा रट ऐसी लागी मीरा जोगन हो गई।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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