जवानी का मौसम | Jawani ka Mausam
जवानी का मौसम!
( Jawani ka mausam )
कटेगा सुकूँ से सफर धीरे -धीरे,
होगी खबर उसको मगर धीरे-धीरे।
मोहब्बत है जग की देखो जरुरत,
उगने लगे हैं वो पर धीरे-धीरे।
उबलने लगा अब अंदर का पानी,
चलाएगी खंजर मगर धीरे-धीरे।
आठों पहर मेरे दिल में वो रहती,
लड़ेगी नजर वो मगर धीरे-धीरे।
जवानी का मौसम टिकता नहीं है,
चढ़ेगा जहर वो मगर धीरे-धीरे।
कलेज़े को थामे कुदरत भी देखे,
लुटाएगी अपना जिगर धीरे-धीरे।
पड़ने न दूँगा मैं कभी आग ठंडी,
होगा असर ये मगर धीरे-धीरे।
चलती है जैसे जमीं पे न चलती,
खुलेगा दरीचा मगर धीरे-धीरे।
उसकी अदाएँ भी परदानशीन हैं,
चलाएगी जादू मगर धीरे-धीरे।
उसकी हया का हर कोई कायल,
चढ़ेगी लहर वो मगर धीरे-धीरे।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई