जिंदगी भर वो परायी दोस्ती होने लगी
( Zindagi bhar wo parai dosti hone lagi )
जिंदगी भर वो परायी दोस्ती होने लगी
इस क़दर उससे मेरी दुश्मनी होने लगी
कर गया रिश्ता वफ़ाये घायल देकर बेदिली
अब भुलाने को उसी ही मयकशी होने लगी
इसलिए मैं लौट आया गांव अपनें देखिए
शहर में मुझको किसी से आशिक़ी होने लगी
बात उससे कुछ बोली मैंनें नहीं थी कुछ ग़लत
क्यों उसे मुझसे मगर यूं नाराज़गी होने लगी
जीस्त में ऐसी हवाएं आजकल मेरी ग़म की
हाँ परेशां रोज़ मेरी जिंदगी होने लगी
दें गया है दर्द ग़म कोई मुझे कल प्यार में
होठों से मेरे जुदा यारों हंसी होने लगी
इसलिए दिल पे उदासी छायी है मेरे हर पल
साथ आज़म के उल्फ़त में बेदिली होने लगी