काल चक्र | kaalchakra
काल चक्र
( kaalchakra )
मोन हूं शांत हूं,
समय गति का सद्भाव हूं!
रुकता नही कभी समय ,
यह ” काल चक्र ” सदैव ही
कालांतर से निरंतर गतिमान हैं ।।
वह रही समय की धारा,
टूटती तो सिर्फ श्वास हैं,
फिर भी काल खंड रुका नही
यह समय कभी थमा नहीं
बदलता तो बस मधुमास हैं।।
जीवन ने इसको सदेव दर्शाया
पतझड़ से वसंत ऋतु तक
वसंत से फिर पतझड़ आया ,
धीरे धीरे वह रही हो जीवन में
जैसे कोई समय की धारा ।।
हैं काल चक्र जीवन आधार,
शून्य भी ये हैं, स्वरूप हैं यही
अवधि भी ये हैं, विध्वंश यही
कोई रोक सका न इसे ज्ञानी
सब ध्यान भी ये हैं और ज्ञान यही ।।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश