कान मेरे उसकी चूडियां खनक गयी

कान मेरे उसकी चूडियां खनक गयी

कान मेरे उसकी चूडियां खनक गयी

 

 

कान मेरे उसकी चूडियां खनक गयी

प्यार में उसके दिल की धड़कन बहक गयी

 

आख़री थी निशानी उसकी पास में

हाथ से वो भी तो अंगुठी छनक गयी

 

आ रही है सदा जिंदगी में ग़म की

सूली पे ही ख़ुशी अपनी सब लटक गयी

 

सिलसिला प्यार का ही जिससें था नहीं

वो हंसी आंखें मेरी तरह मटक गयी

 

दूँ निशानी सनम को ले जाकर और क्या

हाथों से ही सारी चूडियां चटक गयी

 

ग़ैर भी बन गया आज़म के ही लिये

मेरे दिल से न उसकी कभी कसक गयी

 

 

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शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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दर्द ग़म

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