साथ
( Saath )
मिलनेवाले तो मिल हि लेते हैं
न मिलने वाले तो
साथ रहकर भी मिल नही पाते
खेल है सारा भावनाओं का
बिन चाहत के हम जुड़ नही पाते
साथ साथ चलना जरूरी नही होता
दूर रहकर भी करीब रह लेते हैं लोग
तन और धन का आखिर बजूद हि क्या है
जब मन से मन को मिला लेते हैं लोग
एहसास हो जब अपनेपन का
तब मिट हि जाती हैं दूरियाँ सारी
खलता नही अकेलापन भि तब
हो जाती है कैद मुट्ठी में दुनियाँ सारी
छलक उठते हैं पलकों से आँसू
थिरक उठती है मुस्कान अधरों पर
बंध जाते हैं यादों के आलिंगन मे
ठहर जाती हैं दूरियाँ भी सिमटकर
रखते नहीं मायने जगहों के फासले
जरूरी है ,हों दिल करीब दिल के
हो जाती है आसान हर मुश्किल
चलते हैं जब साथ हम मिल के
( मुंबई )