क्योंकि वो मां थी | Kahani Kyonki wo Maa Thi
घर में सन्नाटा छाया हुआ था। सभी एक दूसरे का मुंह देख रहे थे। कोई किसी से कुछ बोल नहीं रहा था । अब क्या होगा? ऐसा क्यों किया ? जैसे विचार सबके मन में आ जा रहे थे।
बात दरअसल यह थी कि मनीष ने कर्ज ले लिया था । कर्ज लेते समय घर में किसी को पता नहीं चला। पैसा क्या हुआ? कहां लगाया? इसका भी पता नहीं था। कर्ज को लिए धीरे-धीरे कई वर्ष बीत गए थे । बैंक में जमा ना करने के कारण नोटिस आया हुआ था जमा करने के लिए।
मनीष परिवार में मझला था। उससे एक बड़े एवं एक छोटा भाई था। छोटे भाई से ज्यादा कोई मतलब नहीं रहता था । बड़े भाई एवं मां चिंता में डूबे थे कि क्या किया जाए? घर में इतनी पूंजी नहीं थी कि तुरंत जमा करवा कर कर्ज से मुक्ति पा लिया जाता।
अक्सर गरीब आदमी चारों तरफ से मारा जाता है । वही अमीर लोग करोड़ों के कर्ज लेकर अक्सर डिफाल्टर होने पर विदेशों की सैर करने निकल जाते हैं। उनका बैंक भी बाल बांका नहीं कर पाती है। वही गरीबों के जान की आफत लगा देती है । गरीब आदमी यदि एक बार कर्ज के चक्कर में फंसता है तो घर द्वार भी बिक जाता है।
सरकारें भी अक्सर पूजीपतियो की गुलाम हुआ करती हैं ।सरकारी बैंकों द्वारा छोटे काश्तकारों को दी जाने वाले कर्ज अक्सर उसे गुलाम बनाने के लिए ही होती है।
गांव में अक्सर जो कर्ज किसान मजदूर आदि को दिया जाता है वह अक्सर खेत को बंधक बनाकर के दिया जाता है। किसानों के पास खेत को बंधक बनाने के अलावा और कोई चारा नहीं होता है । यह एक प्रकार से जमीदारी आदि प्रथा में साहूकारों द्वारा दिया गया ब्याज की भांति होता है। बस अंतर यही है कि इसमें ब्याज थोड़ा कम देना पड़ता है लेकिन यदि एक वर्ष के अंदर आप अल्टा पलटी नहीं किया तो लगभग चौगुना ब्याज देना पड़ता है।
किसान मजदूर अक्सर इस जाल में फंसे हुए हैं। एक तो उन्हें एक साल में जमा नहीं कर पाते यदि किसी से पैसे लेते भी हैं तो वह पलटी करने के नाम पर 5 -10 परसेंट ले लेता है । इस प्रकार से वह दोनों तरफ से मारा जाता है।
मनीष आखिर करें तो क्या करें? गरीबों को उधार भी आवश्यकता पड़ने पर नहीं मिलता है। मनीष की दुकान वर्षों से चल नहीं रही थी । दुकान में समान हो तो चले । अंत में निराश हताश होकर उसने सरकार से कर्ज ले लिया था।
कर्ज के पैसे उसने दुकान में तो लगाया लेकिन सावधानी न बरतने के कारण धीरे-धीरे वही स्थिति आ गए। लोग उधार ले लिए लेकिन देने का नाम नहीं ले रहे थे । उसने कर्ज लिया है कभी किसी को बताया नहीं बल्कि जब उसकी मां पूछती तो वह बता देता है कि उधार लाकर लगाया हूं दे दूंगा।
बात आई गई हो गई आज कर्ज का बोझ सर पर चढ़कर बोल रहा है।
मां ने मनीष से पूछा-” आखिर तूने कभी घर में चर्चा क्यों नहीं किया। बताना तो चाहिए था।”
वह मुंह लटकाए खड़ा रहा लेकिन बोला कुछ नहीं आखिर बोलना भी क्या मां से । गलती तो कर बैठा था।
फिर मां ने अपने छोटे बेटे से पूछा की बात क्या करना चाहिए
तो छोटे ने कहा-” मां क्या करना है जब छोटे भइया ने कर्ज लिया है तो वही भरे।”
मां छोटे बेटे का इस प्रकार से उत्तर सुनकर आवाक रह गई। फिर उसने कहा-” मैं तो सोचती थी तू पढ़ा लिखा है थोड़ा समझदार होगा लेकिन पढ़ लिखकर भी तेरे दिमाग में गोबर भरा गया है । तुझे पढ़िना दिखाना सब बेकार हो गया तू महा मुर्ख निकला।”
ऐसा कहकर मां के आंसू छलक पड़े। छोटे को अपनी गलती का एहसास हुआ । वह मां से गलती मांगने लगा । अब मुख से बात तो निकल चुकी थी।
मां ने शांत होकर कहा -“छोटे यह तेरी गलती नहीं है । आजकल बच्चों को शिक्षा ही ऐसे दी जा रही है। यह परिवार ऐसे नहीं चलता बेटा। परिवार में एकता बनाए रखने के लिए कभी-कभी दूसरों की गलतियों को नजर अंदाज करना पड़ता है । मां ने कहा -“मंझले ने गलती कर दिए तो क्या करें? वह तो है मेरा ही बेटा है ना ।
बताओ शरीर में यदि हाथ पैर में दर्द हो तो क्या उसे वैसे ही छोड़ देते हैं । या उसका उचित उपचार करते हैं । मझला यदि आज मुसीबत में है तो हम सबको मिलकर उसका साथ देना चाहिए। यदि साथ नहीं दिया तो वह अकेला पड़ जाएगा।”
मां की विशाल हृदयता को देखकर छोटे का भी दिल भर गया । उसकी आंखें भी नम हो गए । वह सोचने लगा कितना विशाल हृदय है मां का । यही कारण है की मां को ईश्वर का स्वरूप माना जाता है।
कर्ज चुकाने की सबसे बड़ी चिंता मां और उसके बड़े बेटे को हो रही थी। मां नहीं चाहती थी कि मझले को कोई कुछ हो। इसलिए खेत को गिरवी रखकर कर्ज चुकता करने का निर्णय लिया गया । उनके पास ज्यादा खेत भी नहीं था । गिरवी रखने के बाद क्या खायेंगे यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी । लेकिन मरता क्या नहीं करता । खेत गिरवी रखकर कर्ज को चुका दिया गया।
आज मां ने शांति से भोजन किया था। जब से उसने सुना था की मंझले को कर्ज ना देने के कारण नोटिस आया हुआ है।उसने ठीक से कभी एक कौर मुख में डाला हो । वह सोचा करती थी कि उसे कर्ज से मुक्ति कैसे दिलाई जाए?
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )