कालिख़ मल जाएँगे | Kalikh mal Jayenge

कालिख़ मल जाएँगे

( Kalikh mal jayenge ) 

 

ये बेहूदे लफ्ज़ अग़र जो खल जाएँगे
लोग मुँह पे आकर कालिख़ मल जाएँगे

देख ख़िज़ाँ की ज़ानिब मत नाउम्मीदी से
रफ़्ता-रफ़्ता गुजर सभी ये पल जाएँगे

मत आया कर छत पर यूँ तू रोज़ टहलने
चाँद सितारे शम्स नहीं तो जल जाएँगे

छोड़ो अब ये बनना रोज़ क़िताबी कीड़े
इल्म बड़ों से लो सब संकट टल जाएँगे

है पतझड़ की मानिंद इन दुखों का आना
आज नहीं तो कल परसों ये चल जाएँगे

ठीक नहीं है क़तई उम्र पर यूँ इतराना
ये सब नूर जवानी इक़ दिन ढल जाएँगे

 

प्रकाश प्रियम
लखेर,बाया-मनोहरपुर,आमेर,जयपुर (राज.)

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