करवा चौथ | Karwa Chauth kavita
करवा चौथ
( Karwa Chauth )
( 3 )
मेरे जीवन की चांदनी, तुझको लगता हूं चंद्र प्रिये।
रोम रोम में स्नेह रश्मियां, भीगी सुधारस रंध्र प्रिये।
दिल से दिल के तार जुड़े, सुरों का संगम भावन हो।
मैं मनमौजी बादल हूं, तुम मधुर बरसता सावन हो।
सौम्य सुधा सुधाकर पाओ, करती हो उपवास प्रिये।
करवा चौथ सौभाग्यवती, ये व्रत बड़ा है खास प्रिये।
कुमकुम रोली चंदन लेकर, सजाओ सुंदर थाल प्रिये।
सुख समृद्धि घर में आए, हो जाओ मालामाल प्रिये।
कर सोला श्रृंगार सुंदरी, छत पर तुम आ जाओ प्रिये।
प्रियतम प्यार नेह की धारा, झोली में तुम पाओ प्रिये।
आपस का विश्वास प्रेम ही, सुख की पावन पूंजी है।
खुशियों का यह दीप सुहाना, सौभाग्य की कुंजी है।
आशाओं की दिव्य ज्योति , मन मंदिर सजाओ प्रिये।
प्रीत भरे मधुर तराने लेकर, अधरों से मुस्काओ प्रिये।
मै एक प्रेम पुजारी हूं, तुम प्रेम की डगर सुहानी हो।
तुम दिल की धड़कन प्यारी, हृदय राज दुलारी हो।
आया शुभ दिवस मनाओ, झूमो ताल मिलाओ प्रिये।
चांद आज उतरा है ज़मीं पे, प्रीत तराने गाओ प्रिये।
( 2 )
वो चांद कह के गया आऊंगा लेकर चांदनी।
पूर्णिमा को चमका दूंगा करवाचौथ भागिनी।
प्रेम सुधा बरसा दूंगा आऊंगा फिर धरा पर।
दो दिलों में प्यार भरो लाउंगा प्रीत यहां पर।
स्नेह निर्झर हृदय से धवल चांदनी चमक रही।
गौरी सज श्रृंगार धरे आंखें प्रीत से दमक रही।
प्रीत की पावन डोर जीवन की सुहानी भोर को।
अमृत रस से भर दो सुखमय करूं हर पल को।
करना इंतजार मेरा खुशियों से भर दूं दामन तेरा।
सुहाग सुख गौरी पाये चांद जब झोली भर जाए।
करवा चौथ को आऊंगा सुहागिनों का मैं चांद।
इंतजार की पावन घड़ियां सब्र का टूटता बांध।
प्रेम का प्रतीक बन गया करवा चौथ व्रत खास।
प्रियतम जियो हजारों साल नारियां करें उपवास।
मनोकामना पूरी करूंगा फिर चांद कहकर गया।
जीवन में खुशियां भरूंगा भाव धरो करुणा दया।
( 1 )
सौभाग्य का प्रतीक है करवा चौथ व्रत खास
सुहागन नारियां करती लेकर करवा उपवास
आरोग्य सुख समृद्धि दीर्घायु पाए सुहाग
चंद्र रश्मियां उर में जगाती दांपत्य अनुराग
सज धज नारी चौथ को करे सोलह श्रृंगार
मन का मीत मनोहर चंद्रमा निरखे बारंबार
व्रत खोले स्वामी संग दर्श सुधाकर पाकर
बुजुर्गों का आशीष ले पति चरण को छूकर
करवा चौथ भी ढल गया फैशन के नए दौर में
पति अब पीस रहा नई फरमाइशो के शोर में
आस्था प्रेम समर्पण के मधुर स्नेह को दर्शाता है
धवल चंद्रिका लिए घट में आलोक भर जाता है
जीवन साथी के सुख की कामना करती हमसफ़र
सद्भाव प्रेम आनंद से जीवन का कटता रहे सफर
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )