अप्रेल फूल | एक हास्य कविता
अप्रेल फूल
( April Fool )
कुंवारे पन से जब मैं एक दिन ऊब गया,
फिल्मी माहौल में तब पूरी तरह डूब गया!
बॉलीवुड का जब मुझ पर था फितूर छाया,
पड़ोसन को पटाने का ख़्याल दिल में आया!
मेरे घर के सामने रहती थी खूबसूरत पड़ोसन,
चाहने लगा था मैं तो उसे हर पल मन ही मन।
एक दिन उसे पटाने की कि बड़ी मशक्कत,
सोचा चलो बता दी जाए आज उसे हकीकत।
पहुँच गया उसके घर लेकर रेड रोज,
बाँहें फैलाकर मैंने किया उसे प्रपोज।
मेरी ऐसी हरकत देखकर पड़ोसन शरमा गई,
थोड़ी सी डरी थोड़ी सहमी थोड़ी घबरा गई।
बोली कैसे हो गई तुम्हारी इतनी बड़ी जुर्रत,
मुझे पटाने घर चले आए तुम्हारी इतनी हिम्मत।
पापा को बुलाकर अभी तुम्हें पिटवाती हूँ,
तुम्हारे सिर से इश्क़ का भूत उतरवाती हूँ।
बेहद घबरा गया मैं उसकी यह बात सुनकर,
तिकड़म मैंने लगाई और फिर बोला उछलकर।
मैं तो मजाक कर रहा था हो जाओ तुम कूल,
आख़िर क्यों भूल गई आज है अप्रैल फूल।
अप्रैल फूल तो साहब हमने खुद का बना दिया,
झूठ बोलकर खुद को पीटने से बचा लिया!
कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’
सूरत ( गुजरात )
#sumitkikalamse