तुम्हे चाहा अधिक सारे जहां से
तुम्हे चाहा अधिक सारे जहां से

तुम्हे चाहा अधिक सारे जहां से

( Tumhe chaha adhik sare jahan se )

 

तुम्हे चाहा अधिक सारे जहां से।
मुकद्दर मैं मगर लाऊ कहां से।।

ऐ  मेरी  जाने  गजल  तू  ही  बता,
कौन हंसकर हुआ रूखसत यहां से।।

किसी भी चीज पे गुरुर न कर,
हाथ खाली ही आया है वहां से।।

मैं  दुनिया  छोड़कर के आ गया हूं,
वो कब निकले भला अपने मकां से।।

सब्र  भी  चीज  कोई  होती  है,
वो आयेगा जमी पर आसमां से।।

अधेरे  आये  शेष  तो  भी  क्या,,
दिया जलता रहा अपनी गुमा़ं से।।

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कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )

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