Kavita Dard Suno Gajraj ka

दर्द सुनो गजराज का | Kavita Dard Suno Gajraj ka

दर्द सुनो गजराज का

( Dard suno gajraj ka ) 

 

अच्छा नही किया इस मानव ने,
खाने में बारुद खिलाया मानव ने।
मैं हूॅं एक भोंला-भाला सा पशु,
जब कि मुझको गणपति यें माने‌।।

गलत कभी कुछ में करता नही,
मुॅंह से भी बोल में सकता नही।
जंगल के कंद-मूल फल खा लेता,
अगर मानव मुझे घर नही लाता।।

किस जन्म का बदला मुझसे लिया,
मुझे और मेरे गर्भ को मार दिया।
जब कि बनता है तू बड़ा धर्मात्मा,
एक नही तूमने दो को मार दिया।।

तू भी चुकाएगा इसका हिसाब,
मारा मुझको जैसे वह कसाब।
अन्दर की मैंने सुनी है आवाज़,
तड़प रहा अजन्मा बच्चा आज।।

यह कैसे मानव धरती पर रहते,
गर्भ में ही मेरे बच्चें को मार दिया।
दाॅंत और कान मेरे तोड़ है डाले,
जबड़ा और पेट मेरा फाड़ दिया।।

तब में गया एक सरोवर के बीच,
मिटा दिया ख़ुद को पानी के बीच।
आज यह मानव बन गया है दानव,
प्रभु अब जन्म ना देना इनके बीच।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *