दर्पण ना समाए | Kavita Darpan na Samaye
दर्पण ना समाए
( Darpan na Samaye )
रुप तेरा ऐसा
दर्पण ना समाए
मन ना उतराए
भृकुटी ऐसी चांदनी
चांद ना शरमाय
गाल ऐसी लागी
कनक ना चमकाय
ओठ ऐसी रंगाय
भौंरें ना गूंजाय
बाला कानें लटकाए
चंद्रमुखी सा इतराय
हथेली ऐसी जुडाय
सूर्यमुखी नमो कराए
गेसू ऐसी लहलहाय
सौंदर्य प्रकृति बरसाए।
शेखर कुमार श्रीवास्तव
दरभंगा( बिहार)
( नोट : महाकवि काली दास की काव्य पात्रा , शकुंतला जब मेघदूत के गर्भ से निकली, वर्षा की अप्रतिम सौंदर्य की मन मनमोहन धारा मे प्रवाहित हो,शृंगार रस की रचना की है। )