Kavita dhoondte hi reh jaoge

इक्कीसवीं सदी में ढूंढते ही रह जाओगे | Kavita dhoondte hi reh jaoge

इक्कीसवीं सदी में ढूंढते ही रह जाओगे

( Ikkeesaveen sadi me dhoondhte hi rah jaoge )

 

दीवारों में बड़े आले,
सुसराल में दस साले।
कबड्डी में लंबे पाले,
शादी के बाद गौने चाले।
इक्कीसवीं सदी में,
ढूंढते ही रह जाओगे।।

घरों में सिल बट्टा,
गले में पड़ा दुपट्टा।
तराजू में बाट बट्टा,
दोस्तो में मजाक थट्टा।
इक्कीसवीं सदी में,
ढूंढते ही रह जाओगे।।

महानगरों में कच्चे मकान,
गरीबों की टूटी फूटी छान।
बनिये की छोटी सी दुकान,
नाई की सड़क पर दुकान।
इक्कीसवीं सदी में तुम,
ढूंढते ही रह जाओगे।।

ब्राह्मणों में संस्कार,
छत्रियो में तलवार,
वैश्ययो में व्यापार,
शूद्रो में व्यवहार।
इक्कीसवीं सदी में
ढूंढते ही रह जाओगे।।

पंचायतो में हुक्का,
पहलवानो का मुक्का,
परीक्षाओ में तुक्का,
शहरो में तांगा इक्का।
इक्कीसवीं सदी में तुम
ढूंढते ही रह जाओगे।।

घरों में खटोला,
खीर वाला बेला,
शहरो में कोई मेला,
गुरु का सच्चा चेला,
इक्कीसवीं सदी में
ढूंढते ही रह जाओगे।।

भक्तों में सच्ची भक्ति,
पूजा की बड़ी शक्ति।
जीवों में विरक्ति,
संसार से मुक्ति।
इक्कीसवीं सदी में,
ढूंढते ही रह जाओगे।।

शतरंज में अच्छी चाले,
लड़ाई में नुकीले भाले।
चमड़े की अच्छी खाले,
भविष्य में अच्छी दाले।
इक्कीसवीं सदी में तुम,
ढूंढते ही रह जाओगे।।

 

रचनाकार : आर के रस्तोगी

 गुरुग्राम ( हरियाणा )

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