Kavita Garm Hawayen

गर्म हवाएं | Kavita Garm Hawayen

गर्म हवाएं

( Garm Hawayen )

 

बह रही हवाएं गर्म हैं
मुश्किल है लू से बचकर रहना
एक छत हि काफी नहीं
तुम भी जरा संभलकर चलना

उमस भरा माहौल है
हो गई है खत्म सोच की शीतलता
उठ सी गई है स्वाभिमान की आंधी
यद्दयपि कुछ नहीं है कुशलता

खो गई है पहचान दिल की
मतलब की तलाश ही जारी है
जाल तले बिछे हैं दाने स्वार्थ के
आज हमारी कल तुम्हारी बारी है

गैर हि नहीं, अपनों का खून भी पानी हुआ
घर के भीतर भी चौसर का खेल चल रहा
न रहा भाई, न रहा सगा कोई
भीतर हि भीतर बवंडर मचल रहा

चरमरा सी गई हैं शाख दरख्तों की भी
छाँव से भी संभलकर रहना
लगने लगा है डर खुद से भी खुद को
तुम जरा खुद से भि बचकर रहना

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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