होली का रंग | Kavita Holi ka Rang
होली का रंग
( Holi ka Rang )
भर पिचकारी उड़ा गुलाल रंगा रंग बना होली,
प्रेम में सब उमड़े खिले मुखड़े ऐसी बना होली ।
त्वचा का भी ध्यान रख, कुदरत का भी मान रख,
गुलाल लगा कर जश्न कर फिर सबका सम्मान रख ।
घर गली मोहल्ला सब, रंगो की बरसात कर,
बुढी़ भी मस्ताई, बहन, भाई चाची ताई को भी याद कर।
झमाझम पानी की ना बरसात कर प्रकृति को याद कर,
ताल, तलैया, पेड, पौधे हो सब साथ ऐसी होली को याद कर।
आक्सीजन ही नहीं रहेगी, घुटन से ना हमेशा परहेज कर,
पेड पौधे जगंली-जीव जन्तु को भी हमेशा सहेज कर।
बैर-भाव को त्याग कर नया इतिहास कायम रख,
भाईचारा – मेल-मिलाप बो इतनी अ आस कायम रख।
नई होली नये पल एक नया आगाज़ हो,
सही होली में मात-पिता और सगे सम्बंधी का साथ हो।
ना गुलेल ना पिचकारी ना ना मलाल हो किसी का
सही रंग भर दो प्यार का शाम-सुबह साथ जब किसी का
खान मनजीत भरोसा कर हमेशा एक दूसरे इसान पर,
त्योहार हो खुशी हो हर मन में हमेशा ऐसा प्रयास कर।
जब जब दुख के बादल आते है सुख के बादल छूटते हैं,
अपने हमेशा अपने रहते, दोस्तों की दोस्ती पर नहीं घटते हैं।
कुदरत ने जो दिया अब तू उसी में सबर कर हो
ली जो हो ली आज से हर इंसान की कदर कर।
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )