
हम होंगे कामयाब
( Hum honge kamyab )
कभी ना कभी हम भी होगें कामयाब,
ये उम्मीद का दीया जो है हमारे पास।
ॲंधेरा मिटाकर हम भी करेंगें प्रकाश,
एक ऐसी उर्जा होती है सभी के पास।।
देखी सारी दुनियां तब समझें है आज,
क्या-क्या छुपाकर लोग रखते है राज।
छोड़ना पड़ता है घर और ऐश आराम,
तब जाकर करतें सबके दिलों पे राज।।
जगाना पड़ता है अन्दरुनी ताक़त को,
तपाना पड़ता इस बाहरी आवरण को।
जैसे यह सोना तपकर फिर निखरता,
कष्टों को झेलकर इन्सान आगें बढ़ता।।
करो आज भलाई मेहनत और कमाई,
जब समझ बात आई तभी सुबह हुई।
कम बोलों धीरे बोलों मीठे बोलों बोल,
पढ़ाई और लिखाई समझो अब भाई।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )
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