Aansoo par kavita
Aansoo par kavita

आँसू!

( Aansoo )

 

हजारों किस्म के देखो होते हैं आँसू ,
जुदाई में भी देखो गिरते हैं आँसू।
तरसते हैं जवाँ फूल छूने को होंठ,
ऐसे हालात में भी टपकते हैं आँसू।

बहुत याद आती है दुनिया में जिसकी,
आँखों से तब छलक पड़ते हैं आंसू।
तबाही का मंजर जब देखती हैं आँखें,
फरियाद लेकर तब बढ़ते हैं आँसू।

गैरों की बाँहों में वो सोते सुकूँ से,
आँखों से खून जैसे बहते हैं आँसू।
सुलगते सवालों के जख्मों को देखो,
दुःख की धूप में तब सूखते हैं आँसू।

लाख छुपाओ तुम परदे में गम को,
किसी न किसी दिन छलकते हैं आँसू।
रात बीतती नहीं कहकशों को गिनके,
बनकर नदी मानों बहते हैं आँसू।

मत काटो जंगलों को ऐ! दुनियावालों,
पहाड़ों की आँखों से झरते हैं आँसू।
गंवाना न आँसू समझो है खजाना,
रहना सजग लोग चुराते हैं आँसू।

 

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )
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