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कर्मगति | Kavita karmagati

कर्मगति

( Karmagati )

 

वैतरणी पार करोगे कैसे, मन की छुदा मिटे ना।
तरेगा कैसे जनम मरण जब,मन से पाप मिटे ना।

इतना ज्ञानी हो होकर के भी,मोहजाल में लिपटा है,
मिटेगा कैसे ताप बताओ, जब तन प्यास मिटे ना।

वैतरणी पार करोगे कैसे…..

 

मुख से राम भजा पर मन में,तेज कटारी रखता हैं।
वैमनस्य से भरा हैं तन मन, राम राम पर जपता हैं।

पाप पुण्य का सारा लेखा, साथ तेरे ही जाएगा,
अहिरावण सा भेष बदल कर,खुद को ही तू ठगता है।

वैतरणी पार करोगे कैसे……

 

जैसा ही तू कर्म करेगा , वैसा ही फल पाएगा।
कर्म की गति ही भेष बदल कर,अपना रूप दिखाएगा।

युगों युगों का बन्धन है जो, कोई तोड़ ना पाया है,
भ्रम में मत रहना की कर्मगति, से बच कर तू जाएगा।

वैतरणी पार करोगे कैसे….

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

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