कोई मुझसे रूठ रहा है | Kavita koi mujhse rooth raha hai
कोई मुझसे रूठ रहा है
( Koi mujhse rooth raha hai )
कोई मुझसे रूठ रहा है वो प्रेम पुराना टूट रहा है।
वक्त की कैसी आंधी आई कोई अपना छूट रहा है।
टांगे खींच रहे हैं मिलकर रिश्ता नाता टूट रहा है।
सद्भावों की धारा में जहर नफरत का फूट रहा है।
अपनी अपनी डफली बाजे राग बेसुरा छूट रहा है।
भाईचारा रहा कहां अब कुटुंब परिवार टूट रहा है।
घुल रही नफरतें रिश्तो में प्रेम सलोना छूट रहा है।
महंगाई की मार खाकर जन मनोबल टूट रहा है।
धीरज धर्म शील खोया वो अपनापन अनमोल।
स्वार्थ में सब गले मिले कहां गये वो मीठे बोल।
अपना उल्लू सीधा करते मतलब की पहचान।
काम निकलते हो जाते हैं लोग बड़े अनजान।
बस दिखावा रह गया सब स्वार्थ का सत्कार।
सद्भावों की थोथी बातें नित हो रहा अनाचार।
ईर्ष्या द्वेष उर समाई कलह का भांडा फूट रहा है।
मंदिर में दीप जलाए मन का विश्वास टूट रहा है।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )