कृष्ण | Kavita Krishna
कृष्ण
( Krishna )
नयन भर पी लेने दे, प्रेम सुधा की साँवली सूरत।
जनम तर जाएगा हुंकार,श्याम की मोहनी मूरत।
ठुमक कर चले पाँव पैजनी, कमर करधनियाँ बाँधे,
लकुटी ले कमलनयन कजराजे,मोरध्वंज सिर पे बाँधे।
करत लीलाधर लीला मार पुतना, हँसत बिहारी।
सुदर्शन चक्रधारी बालक बन,दानव दंत निखारी।
जगत कल्याण हेतु मानव बन,रास रचाई कन्हैया।
प्रेम का पाठ पढाई, द्वेष भुला कर रास रचईया।
कर्मयोगी बन बाँसुरी त्याग, सुदर्शन चक्र उठाए।
तोड़ा मर्यादा जब शिशुपाल शीश को दिया उतार।
गोवर्धन नख पर जिसने धरा, उसी ने गीता रच दी।
कि जिसने नाग नथा उसने ही, महाभारत को रच दी।
जगत कल्याण हेतु जिसने, विराट सा रूप दिखाया।
वही भोला सा कृष्ण मुरारी, गोपी बन गाय चराया।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )