Poem shak ki bimari
Poem shak ki bimari

शक की बीमारी

( Shak ki bimari ) 

 

कोई व्यक्ति ना पालना ये शक वाली बीमारी,

छीन लेती है सुकून घर परिवार का ये हमारी।

इसी शक से हो जाती अक्सर रिश्तों में दरारें,

शक पर सुविचार एवं लिख रहा हूं में शायरी।।

 

आज-कल हर आदमी है इसी शक के घेरे में,

पहले समझें सबके जज़्बात ना रहें अन्धेरें में।

जो अपना नही उस पर कभी हक न जताना,

समय नही लगाना ऐसी बातों को समझने में।।

 

दुष्ट का काम दूसरों का बिगाड़ने में ही रहता,

वस्त्र काटे ऐसे चूहे का कभी पेट नही भरता।

अब प्रथम बारिश में भीगना बातें ही रह गई,

कपड़ो की कीमत इन्सानों से अधिक हो गई।।

 

सही चरित्र वाले दूजे को चरित्रहीन न कहते,

ख़ुद के चरित्र ढ़ीले हो वे ही उंगलियां उठाते।

यह कसूर हर बार गलतियों का नही होता है,

शक की बीमारी से खत्म हो जाते कई रिश्ते।।

 

सुकून‌‌ से शकिया रोगी बना देता है यह शक,

सभी अच्छाई पर पानी फिर जाता उस वक्त।

ज़िन्दग़ी विषेली बन जाती है यह व्यवहार में,

एक गलत शब्द से दरार आ जाती उस वक्त।।

 

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

 

 

1 COMMENT

  1. शक पर लिखी बहुत सुंदर प्रस्तुति। कहते है सब बीमारियों का इलाज हो जाता है पर शक जैसी बीमारी का इलाज नही हो सकता। इसके इलाज की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी।
    शक एक ऐसी दरार है जो अच्छे पति और पत्नि के रिश्ते भी खत्म कर देती है।संबंध विच्छेद या तलाक इसके सही उदाहरण है।

    आर के रस्तोगी गुरुग्राम

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