माँ | Kavita Maa | Mother’s Day 2022 Poem
माँ
( Maa )
जन्मदात्री धातृ अम्बा अम्बिका शुभनाम हैं।
माँ से बढ़कर जगत में न तीर्थ है न धाम हैं।।
नौ महीने उदर में रख दिवस निशि संयमित रही,
प्राणघातक असह्य पीड़ा प्रसव तू जननी सही।
कड़कड़ाती ठंड में गीला बिस्तर मैने किया,
ठिठुरती ही रही मैया सूखे में मुझको किया।।
तेरी गोदी में ही खेले कृष्ण और श्रीराम हैं।।
माँ से बढ़कर ०
दाना पानी चोंच में रख नीड़ में आती है माँ,
भूखे रह कर भी बच्चों को खिलाती है माँ।
अपने कष्टों को छिपाया कभी बताया नहीं,
माँ के जैसा दुनिया में कोई दूसरा आया नहीं।।
माँ ही है जो ध्यान रखती प्रतिपल आठों याम है।।
माँ से बढ़कर०
तेरे ही प्रस्वास से ये सृष्टि अविरल चल रही है,
माँ की ममता आज भी वैसी है जैसी कल रही है।
अमृतपय का महाऋण कोई चुका पाया नही,
स्वर्ग हो या अपवर्ग माँ को झुका पाया नही।।
माँ के ही पदरज से निकले ऋक,यजु,साम हैं।।
माँ से बढ़कर०
लाल मेरा दीप तारा माँ प्रफुल्लित होती है,
गगन भी रो पड़ता है जब माँ उपेक्षित होती है।
वृद्धाश्रम को देखकर फटती है छाती अवनी की।
हो गई माँ भार कैसे शेष दुनिया अपनी की।।
सम्भल जा कर माँ सेवा इसी में विश्राम है।।
माँ से बढ़कर ०
कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )
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