मगरमच्छ के आंसू | Kavita magarmach ke aansoo
मगरमच्छ के आंसू
( Magarmach ke aansoo )
दिखावे की इस दुनिया में लोग दिखावा करते हैं
घड़ियाली आंसू बहाकर जनमन छलावा करते हैं
मगरमच्छ के आंसू टपकाते व्यर्थ रोना रोते लोग
अपना उल्लू सीधा करते मतलब से करते उपयोग
भांति भांति के स्वांग रचाते रंग बदलते मौसम सा
बात बात में जहर घोलते मौका खुशी या गम का
छल कपट सीनाजोरी से जिनका गहरा नाता है
मगरमच्छ के आंसू बहाना जिनको खूब आता है
मधुर रसीली बातों के पारंगत होते वो चतुर लोग
गिरगिट भांति रंग बदलते विद्वत्ता का करते ढोंग
झूठी संवेदना जताकर जा दिलों में बस जाते हैं
मक्कारी जिनका आभूषण सज्जनता जताते हैं
जिनसे काम पड़ा फिर देखो मगरमच्छ के आंसू
लच्छेदार मीठी सब बातें हो भाषण जिनके धांसू
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )