मैं और मेरी तनहाई | Main aur Meri Tanhai
मैं और मेरी तनहाई
( Main aur Meri Tanhai )
मिलने को तो मिला बहुत,
पर मनचाहा न मिला।
निद्रालस नयनों को सपनों
ने है बहुत छला।
बनते मिटते रहे चित्र
कितने ही साधों के।
दण्ड भोगता रहा
न जाने किन अपराधों के,
साॅसों की पूंजी कितनी ही,
मैंने व्यर्थ गंवाई।
बहुत बार भयभीत कर गई,
अपनी ही परछाईं।
फूलों की आशायें भर थीं,
काॅटों पर ही चला।
निद्रालस नयनों को सपनों
ने है बहुत छला।
नव प्रभात था जब जीवन का,
मिली नहीं अरुणाई।
रात रात भर तड़प तड़प कर
रोई थी तरुणाई।
अब क्या कल की कहूं आज
जो है अब तक बीता।
एक यही आश्चर्य रहा जो
अब तक हूं जीता।
किसे बताऊॅ एकाकी हो,
कितनी बार जला।
निद्रालस नयनों को सपनों
ने है बहुत छला।
जो कुछ होता रहा विगत में,
कैसी किसकी बातें।
अब तो केवल शान्ति चाहिये,
नहीं घात प्रतिघातें।
मार गई तन्हाई, कब वह
सज धज के आयेगी।
मुझे उठा लेगी बाहों में
लोरी मधुर सुनायेगी।
बंद यवनिका में सब होगा,
जो भी बुरा भला।
निद्रालस नयनों को सपनों
ने है बहुत छला।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)