Kavita maryada

मर्यादा | Kavita maryada

मर्यादा

( Maryada )

 

 

रामराज में मर्यादा का जो पाठ पढ़ाया जाता था
आचरणों में संस्कारों का रत्न जड़ाया जाता था

 

मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र आज्ञाकारी पुत्र हुए
पिता को परमेश्वर माना आज्ञा ले वन को गए

 

लक्ष्मण भरत सरीखे भाई हनुमान से भक्त हुए
सीता जनक दुलारी प्यारी पावन प्रेम हृदय बहे

 

कलयुग में मर्यादाएं ढह गई आचरण मलीन हुए
भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी जन छल कपट में लीन हुए

 

धोखाधड़ी कालाबाजारी झूठ कपट व्यापार हुआ
मतलब के रिश्ते नाते सब स्वार्थ का व्यवहार हुआ

 

वृद्धाश्रम में मात पिता को बेटा छोड़कर आता है
मर्यादाएं तोड़कर सारी वो तिरछे नैन दिखाता है

 

सत्य सादगी सदाचरण में जब मर्यादा रहती थी
लाज शर्म जिंदा थी मन में पावन गंगा बहती थी

 

आस्था विश्वास खो गया मर्यादा हुई गायब सारी
कहां गया वो प्रेम सलोना बदल गई रीत हमारी

   ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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