नए जगत की रीत निराली | Kavita Naye Jagat ki Reet Nirali
नए जगत की रीत निराली
( Naye jagat ki reet nirali )
नए जगत की रीत निराली,
सुनो आज तुम धरम ज़बानी,
मौसम बदले,बदली कहानी,
विष है मीठा, अमृत कुनैनी !!
बीता बचपन, गई जवानी,
बीत गई सब बात पुरानी,
बुढ़ापे छलकी अब रवानी,
आई बनकर नूतन कहानी !!
कलयुग की है नई कहानी,
उलटी गंगा बहता पानी,
दिन में खिले रात की रानी,
नागफ़नी पर आयी लाली !!
उजले कपड़े मुख पर लाली,
मन काले, जुबान भी काली,
नकली मुख पर हँसी जाली,
सामने तारीफ़ पीछे गाली !!
बीबी करती सेवा पानी,
मन भाती पर सबको साली,
चिकनी चुपड़ी बातों वाली,
पड़ोसन लगती है मतवाली !!
मतलब की है दुनियादारी,
मन में ज्वाला आँख में पानी,
ढोंग रचा करते मनमानी,
चाहे मरती किसी की नानी !!
सच्ची बातें लगती गाली,
झूठी बातों बजती ताली,
घर की रसोई रास न आती,
बाहर खाये भर-भर थाली !!
आँखों काजल, चेहरे लाली,
मुँह में पान होठ पर लाली,
सर पर टोपी कलगी वाली,
भले ही जेब पड़ी हो खाली !!
नकली माल, पालिश खाली,
बन जाती है कीमत वाली,
बछड़ा नया तेल की मालिश,
बूढ़े बैल को मिलती गाली !!
जाने कैसी मत गई मारी,
दूध नाम पर बिकता पानी,
सब है पंडित सब है ज्ञानी,
हर कोई करता, है मनमानी !!
डी के निवातिया