हर लम्हा है हसीन | Ghazal Har Lamha
मेरी ग़ज़ल
( Meri Ghazal )
मिलती सभी से मेरी ग़ज़ल दिलकशी के साथ
शीरीं ज़ुबां है उसकी बड़ी चासनी के साथ
हम जीते ज़िंदगी को हैं दरियादिली के साथ
हर लम्हा है हसीन फ़क़त मैकशी के साथ
बातें करेंगे वस्ल की और इंतिज़ार की
इक़रार-ए-इश्क़ की सदा संजीदगी के साथ
बीती सुख़नवरी में ही अब तक तमाम उम्र
इंसाफ़ कब करोगे मगर शायरी के साथ
मैंने लिया था नाम तो उसका ख़ुलूस से
उसने दिया जवाब मगर बेरुख़ी के साथ
आफ़त हज़ार सिर पे है मायूसियाँ बहुत
कैसे गुज़ारे दिन भला हम मुफ़लिसी के साथ
ये दौर ख़ौफ़ का है दुआ कर ख़ुदा से तू
मुश्किल जनाब जीना है अब तीरगी के साथ
धोखे दिए हबीब ने रुसवा किया हमें
और सिर झुका के अपने खड़े बुज़दिली के साथ
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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