नियति चक्र | Kavita Niyati Chakra
नियति चक्र
( Niyati Chakra )
टूट जाते हैं तारे भी
लगता है ग्रहण चाँद और सूरज को भी
बंधे हैं सभी नियति चक्र के साथ ही
रहा यही नियम कल भी आज भी
हो सकते हैं कर्म और धर्म झूठे
परिणाम कभी गलत नहीं होता
जीवंत जगत में मिले छुट भले
प्रारब्ध में मोहलत नही होता
बदल जाती हैं भाग्य की रेखाएँ भी
यदि भावनाओं मे सत्य धर्म हो
निष्ठा, आस्था, विश्वास हो निजता पर
मानवता से भरा निज कर्म हो
जरूरी है मोह का बंधन भी
जरूरी है देह का संबंध भी
जरूरी है साधन संपनन्ता भी
पर जरूरी है निष्पक्ष न्याय भी
आईने में दिखता है चेहरा आपका
व्यक्तित्व तो दिखता है समाज में
उभरता है आज हि कल के दरख़्त मे
जो बोते हैं बीज आप आज मे
( मुंबई )
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