
गुलबदन
( Gulbadan )
निभा लो आज भले ,रवैया तुम अजनबी
आयेंगे नजर हम भी कभी,यादों के पन्ने मे
आज हैं हमराज कई,आपके सफर मे
तन्हाई के आलम मे ,हमे ही याद कर लेना
जवां चांद की रात मे,सितारे जगमगाते हैं
उतरती चांदनी मे,तारे भी नजर नहीं आते
आज हो गुल बदन गुलजारे गुलशन मे
पतझड़ मे डालियां भी पहचानी नही जाती
उड़ लो ,आकाश की अनंत ऊंचाई मे आज
सिवा जमीन के आशियाना कहीं नहीं होता
हमे तो आदत है ,कर लेंगे बेवफाई भी सहन
आएंगी याद बातें हमारी,जब हम न होंगे
था भी हूं भी
( Tha bhi hoon bhi )
मान अपमान की चिंता नही
लोभ नही किसी सम्मान का
अंतिम स्वांस के पहले तक
करूं कर्म धर्म और इंसान का..
खुशियां जमाने की तुम्हे ही मुबारक
तुम्हे ही हर महफिल मे हार मिले
मेरे हर शब्द मे शामिल हो मानवता
फिक्र नही ,मिले जीत या हार मिले..
पहुंच नही पाया हजारों की भीड़ तक
चंद लोग भी लाखों हैं मेरे लिए
तनहा सफर मे ही चलता रहा हूं
करूं क्यों अभिमान मैं किसके लिए..
आया था हांथ खाली,कर्म खातिर
तमन्ना है की धर्म अपना निभा सकूं
जमाने से ही मिला यह जीवन मुझे
काश!इसके खातिर ही काम आ सकूं..
है विश्वास मुझे कर्म पर मेरे
आश्वस्त हूं कर्जदार नही रहा
दे रहा वाह मेरा नही,यहीं का रहा
मैं था भी हूं भी रहूंगा भी,यही मेरा रहा..
कल की सोच
( Kal ki soch )
भले जियो न जियो तुम धर्म के लिए
धर्म के साथ तो तुम्हे जीना ही होगा
अपनाओगे नही यदि तुम सतनातन को
निश्चित ही है की बेमौत तुम्हे मरना होगा
न आयेगी काम ये सारी दौलत तुम्हारी
न मोटर न गाड़ी न कोई ये साधन सारे
आ गई हुकूमत जब किसी गैर की द्वारे
बचाने को जान अपनी भागोगे मारे मारे
कोई कह रहा है सनातन एक रोग है
कोई कह रहा है राम ही काल्पनिक हैं
कोई कह रहा तुम्हे भगवा आतंकवादी
कोई कह रहा मजहब ही वैकल्पिक है
कानों मे तेल अभी आंखों मे मैल है
रहो खामोश,कुछ दिन का ही खेल है
सिखाता नही गलत,सनातन कभी
किंतु कहता जरूर है भूलें न कर्म कभी
बीत जायेगी तुम्हारी,कुछ बच्चों की सोचो
आज है आनंद का,जरा कल की भी सोचो
हम आज हैं ,होंगे जल्द ही अतीत के घेरे मे
पर,तुम न गंवाओ इसे महज सो लेने मे
अटूट बंधन
( Atoot bandhan )
अब तक भी न समझे तुम हमे
हम भी तुम्हे कहां तक समझ पाए
समझ मे ही गुजर गई उम्र सारी
न कुछ तुम, न कुछ हम कह पाए
अलग न तुम हुए, न हम दूर गए
न कह पाने की कशिश मे रह गए
चाहत न कम थी ,किसी की कहीं
लफ्जों मे बयां हम कर नही पाए
समझते रहे तुम,नासमझ हमे सदा
जानकर भी हम ही अनजान बने रहे
तुमसे ही तुम्हारी शिकायत भली लगी
होकर भी अलग,हम एक ही बने रहे
बातें बहुत थीं,शिकायतें भी बहुत थीं
करते भी क्या,हममें मुहब्बत बहुत थी
सहते रहे खामोशी मे रहकर सभी
दिलों मे मिलने की हसरत बहुत थी
अब तो,हर पड़ाव से हम,दूर चले आए
इच्छा नही,भावनाओं का ही आलिंगन है
होंगे कभी तो हम तुम भी ,संग अपने ही
यही तो जगती मे प्रेम का अटूट बंधन है।
सहारा
( Sahara )
सहारा भी जरूरी है हर किसी के लिए
उम्मीदें भी वाजिब हैं जिंदगी के लिए
भरोसे पर ही न बैठें पर,भूलकर भी कभी
कदमों मे जान भी जरूरी है चलने के लिए
बड़े ही बेवफा हैं लोग,तसल्ली भी धोखा है
रखते हैं खयालों मे,अपने मतलब के लिए
सहारे की चाहत में,सहारा कहां मिलता है
बना लेते हैं खुद का सहारा,वो अपने लिए
रखना संभलकर कदम,जमीन दलदली है
बिछाकर रखे हैं धोखे,तुम्हे गिराने के लिए
सहारा जो होता ,तो सहारे की जरूरत न थी
बना लेते हैं बेचारा वो,सहारा बनने के लिए
( मुंबई )