
मन का संसय
( Man ka Sansay )
उम्मीद हमारी तुमसें है, देखों यह टूट न जाए।
विश्वास का धागा ऐसा है जो,पास तेरे ले आए।
मन जुड़ा हुआ है श्याम तुम्ही से,तू ही राह दिखाए।
किस पथ पहुचें द्वार तेरे, उस पथ को आप दिखाए।
भटकत मन को बांध सका ना,शेर हृदय मतवाला।
भटक रहा है ऐसे जैसे, मन पर लगा हो ताला।
मन की कुण्ड़ी खोल प्रभु,रणछोड़ मुझे मत जाओ।
जाते हो तो वचन हमें दो, लौट के वापस आओ।
संसय उलझा हूं इतना, खुद ही भटक रहा हूँ।
प्यास बुझी ना मेरी ऐसे,जल बिन तडप रहा हूँ।
बार बार मुझकों मुक्तेश्वर, ऐसा भान हुआ है।
तन तपती अंगार निशा सी, ऐसा ज्ञान हुआ है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )