प्रतिशोध | Pratishodh
प्रतिशोध
( Pratishodh )
मै हार नही सकता फिर ये, जंग जीत दिखलाऊंगा।
फिर से विजयी बनकर के भगवा,ध्वंजा गगन लहराऊगा।
मस्तक पर चमकेगा फिर सें, चन्दन सुवर्णा दमकांऊगा।
मै सागर जल तट छोड़ चुका पर,पुनः लौट कर आऊँगा।
जी जिष्णु सा सामर्थवान बन, कुरूक्षेत्र में लौटूंगा।
मैं मरा नही हूँ अन्तर्मन से, हुंकार. नजर फिर आऊंगा।
दिन गिनों सभी बारी बारी, बारिश है थम ही जाएगा।
रवि सप्तअश्व पर पुनः प्रकट,अम्बर पर लौट ही आएगा।
निःशस्त्र हो गया फिर भी मन से, दिव्यास्त्रों का धारी हूँ।
मन शान्त नही है सुनो दुष्ट, मै तेरा ही प्रतिकारी हूँ।
देवो ने शस्त्र नही छोडा जब, मुझसे आशा क्यों मुझसे।
प्रतिशोध अग्नि मे दहक रहा, मैं शेर सिंह हुंकारी हूँ।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )