पुड़िया का नशा | Kavita pudiya ka nasha
पुड़िया का नशा
( Pudiya ka nasha )
पुड़िया खा मुंह भरे गुटखा का रसपान
सड़क दीवारें हो गई अब तो पिक दान
दंत सारे सड़ने लगे उपजे कई विकार
दिनभर खर्चा ये करे रसिक पुड़ियादार
मुंह तो खुलता नहीं आदत पड़ी बेकार
समझाए समझे नहीं छोड़ो नशा अब यार
फैशन सा अब हो गया कैसा यह व्यापार
युवा पीढ़ी जा रही अब देखो नशे के द्वार
पुड़िया में जहर भरा भांति भांति के रोग
जानबूझकर खा रहे पढ़े-लिखे भी लोग
दमा कैंसर का कारण बनता धीमा जहर
कोई अछूता ना रहा चाहे गांव हो या शहर
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )