राजा रंक सभी फल ढोते | Kavita Raja Runk
राजा रंक सभी फल ढ़ोते
( Raja runk sabhi phal dhote )
राजा रंक सभी फल ढ़ोते,
होता कर्ज़ चुकाना।
कर्मों के अनुसार जीव को,
पड़े दंड भुगताना।।
मानव दानव पशु पक्षी बन,
इस धरती पर आता।
सत पथ गामी मंच दिया है,
बिरला नर तर पाता।
कोई जीवन सफल बनाता,
ले जाता नजराना।
कर्मों के अनुसार जीव को,
पड़े दंड भुगताना।।
राग द्वेष से कलुषित होकर,
लोभ मोह में जकड़ा।
अहम भरा उसके मन भीतर,
फिरता अकड़ा अकड़ा।
करता रहता दिनभर झगड़ा,
कुछ भी कहे जमाना।।
कर्मों के अनुसार जीव को,
पड़े दंड भुगताना।।
अमर नाम उसका हो जाता,
दीन हीन मन भाता।
पाखंडी नर पाप कमाए,
लूट लूट के खाता।
शुभ कर्मों में जो लग जाता,
पाता स्वर्ग ठिकाना।
कर्मों के अनुसार जीव को,
पड़े दंड भुगताना।।
दुर्लभ मानुष जन्म मिला है,
मंच मिला अति सुंदर।
पर सेवा मीठी वाणी से,
बस जा दिल के अंदर।।
जांगिड़ तेरे मन मंदिर में,
रब का रहे ठिकाना।
कर्मों के अनुसार जीव को,
पड़े दंड भुगताना।।
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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