Kavita Saath do Tum Agar
Kavita Saath do Tum Agar

साथ दो तुम अगर

( Saath do tum agar ) 

 

साथ दो तुम हमारा अगर,
जिन्दगी भर बन हमसफ़र।
चाहे वक्त की हो कई मार,
बनके रहना कश्ती पतवार।।

देना सारे मुझको अधिकार,
कभी न छोड़ना तू मझदार।
स्नेह बरसाना व देना प्यार,
बनकर रहना तू समझदार।।

कर्म होता जीवन का सार,
और कर्म प्रधान ही संसार।
कर्म करे वो फलेगा फूलेगा,
न करे उसका कर्म सोएगा।।

वेद पुराण भी यही है कहते,
जैसी करनी वो वैसी भरनी।
कर्म का रहता लेखा जोखा,
ईश्वर को दे सकते न धोखा।।

नही घबराएँ देख दुःख कोई,
कर्म जगाये सोये भाग सारे।
कर्म से आये घर में खुशियाँ,
देखे दुख उसे मिले खुशियाँ।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

 

 

 

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