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सीखो | Kavita Seekho

सीखो!

( Seekho ) 

 

कुदरत से संवरना सीखो,
दीपक जैसा जलना सीखो।
नहीं बनों तू नील गगन तो,
बनकर मेघ बरसना सीखो।

आदमी से इंसान बनों तुम,
औरों का बोझ उठाना सीखो।
काटो नहीं उन हरे वृक्षों को,
नई पौध लगाना सीखो।

कद्र करो तू छोटे-बड़े का,
फूल के जैसे खिलना सीखो।
हुनर,जमीं,आसमां अपना हो,
तूफानों से लड़ना सीखो।

भले न दौडो समंदर लेकर,
दरिया बनकर बहना सीखो।
खंडित न हो राष्ट्र तुम्हारा,
देश की खातिर मरना सीखो।

ताजमहल के ख्वाब से पहले,
नींव का पत्थर बनना सीखो।
संस्कार की घटा के नीचे,
ज्ञान का सागर भरना सीखो।

घिसी-पिटी राहों को छोड़ो,
वक़्त के साथ बदलना सीखो।
तेरी मेहनत और न गटके,
बच्चों पढ़ना-लिखना सीखो।

 

रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक), मुंबई

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