स्मृतियाँ | Kavita Smritiyan
स्मृतियाँ
( Smritiyan )
स्मृतियों के घने बादल
फिर से घिरकर आयें हैं
सांध्य आकाश में सांध्य बेला में
तारे छिप रहें हैं कभी तों कभी झिलमिला रहें हैं
स्मृतियों के घने बादल फिर से घिर रहें हैं
घनघोर होगीं फिर वर्षा
आसार नजर आ रहें हैं
पग चिन्ह हैं तुम्हारे जानें के
जो लौटकर आयें नहीं कभी
स्वप्न नही हैं यह सत्य जीवन का
कभी न लौटकर आने का
युग बित गयें ना जानें कितने
जून जुलाई की बरसात
याद दिलाती हैं तुम्हारे गुजर जाने की
फिर कभी न लौटकर आने की
स्मृतियों के घने बादल फिर से घिरकर आयें हैं
सांध्य आकाश में तारे छिप रहें हैं कभी तों कभी झिलमिला रहें हैं
सांध्य बेला
स्मृतियों के बीच हैं
चाँद अकेला
हैं चाँद अकेला…
चौहान शुभांगी मगनसिंह
लातूर महाराष्ट्र