Kavita Adhurapan
Kavita Adhurapan

अधूरापन

( Adhurapan )

 

कर लो कितनी है पूजा अर्चना
नहा लो भले गंगाजल से
सोच मगर मैली ही रही
रहोगे दूर ही तुम कल के फल से से

परिधान की चमक से
व्यवहार में चमक आती नहीं
कलुषित विचारों के साथ कभी
बात सही समझ आती नहीं

पढ़ना लिखना सब व्यर्थ है
भर लो ज्ञान का भंडार भले
कर्म घट तो रहता खाली ही खाली
धर्म दिखावे मे भटक रहे संसार भले

क्या होगा देख रहे जब खोट सभी में
अपने मन के भीतर नजर गई नहीं
समझ रहे सबको कानाफुसी में
खुद क करतब की खबर रही नहीं

बड़े अभागे निकल गए तुम
ना राम मिले ना अपना ही कोई
द्वेष लिए बस मन में घूम रहे
ना जाग सके ना नींद ही पूरी हुई

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

यह भी पढ़ें :-

सभी के लिए | Sabhi ke Liye

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here