उम्र | Kavita umra
उम्र
( Umra )
जो हंसते मुस्काते रहते मोती प्यार के लुटाते रहते
उनकी उम्र जवां रहती है सबको गले लगाते रहते
बचपन जवानी बुढ़ापा जिंदगी के है पड़ाव हमारे
खट्टे मीठे आते सदा जीवन में उतार-चढ़ाव प्यारे
उम्र झलकती चेहरे से ढलती उम्र जाती पहचानी
चिंता से बेकार हो जाती हंसती खिलती जवानी
चंचल मन में लेती हिलोरे उमंगे उर उठती भारी
उम्र की मोहताज नहीं कुंठाये मिट जाती सारी
दया क्षमा प्रेम दिलों में बड़प्पन भी उनको मिलता
खड़ा खजूर खूब बड़ा जग में छाया नहीं दे सकता
उम्र नहीं है मापदंड जीवन के अनुभव सच्चे
आंधी तूफानों को सह ढह जाते घरोंदे कच्चे
ज्यों ज्यों उम्र बढ़ती जाए समझदारी भा जाती है
ठोकरें खाकर दुनिया में अकल भारी आ जाती है
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
बहुत सुन्दर कविता।
वाह!!!