कृष्ण दीवानी | Krishna Diwani
कृष्ण दीवानी
( Krishna diwani )
प्रेम गली में ढूंढ रही,
कान्हा तोहे प्रेम दीवानी।
प्रेम है मेरा मन मोहन,
मोहे मोहे रुप मोहिनी।
कटि कारी करधन डारी,
चले चाल मतवाली।
कटि कमरी पीली बांधो,
करधन धूधरू डारौ।
पांव पैजनी बाजे छम छम,
नाचै और नचावै।
कान्हा ढूढे तोहे ,
तोरी सखी प्रेम दीवानी री।
मुखमंडल शोभा देख सखी,
देख दरश मन हर्षत है।
गले बैजंती माल पड़ी,
मान शिरोमणि दर्शत है।
सोहे शीर्ष मोर मुकुट,
मन हर्षत है सखी हर्षत है।
अधर सुकोमल मधुर सखी,
मानो मधुरस बरसत है।
होठ बासुरी इनके लगी,
मोरी सौतन है सखी सौतन है।
होठ लगी , प्प्रिय स्पर्श करें,
मनमोहक मुरली बाजत है।
नयन बड़े कजरारे सखी,
विशाल नयन अति प्यारे है।
बीच डगर सखी छेड़त है,
मोरी कोमल कलइयां मरोड़त हैं।
कृष्ण कालिंदी के तीर सखी,
चीर चुरावत भागत हैं।
राग मोहिनी बजाय सखी,
यमुना के तीर बुलावत है।
मोहि प्रेयसी पुकारत है,
गोपियन संग रास रचावत है।
चितचोर मोरा है चोर सखी,
मिल ऊधौ संग दहिया चुरावत हैं।
प्रतापगढ़, ( उत्तरप्रदेश )