कब ख़ुशी की यहां जली बीड़ी!
कब ख़ुशी की यहां जली बीड़ी!
कब ख़ुशी की यहां जली बीड़ी!
रोज ग़म की जलती रही बीड़ी
बुझ जाती है जलने से पहले ही
जो जलाता हूँ प्यार की बीड़ी
नफ़रतों की जली यहां ऐसी
सब ख़ुशी ख़ाक कर गयी बीड़ी
छोड़ दें पीना दोस्त इसको तू
कर रही ख़त्म जिंदगी बीड़ी
रह गया नफ़रत का धुंआ दिल में
जल गयी रिश्तों की सभी बीड़ी
ख़ाक जो कर गयी सब फूलों को
ऐसी दामन में वो गिरी बीड़ी
कस लगा ऐसा प्यार का मुझपे
आज़म के लब जला गयी बीड़ी