कुंभ की धार्मिक महत्व
कुंभ की धार्मिक महत्व

कुंभ की धार्मिक महत्व

( Kumbh ka dharmik mahatva )

 

सनातन धर्म की पौराणिकता को,
याद दिलाता है यह कुंभ ।
बारह वर्षों में एक बार ही ,
आता है यह कुंभ ।

 

सभी देवों का धरती पर ,
होता जिस पल आगमन ।
संघ साधु संत के सानिध्य का ,
अवसर दे जाता है यह कुंभ ।

 

गिरी जहांँ थी अमृत बूंँदें ,
वह शहर मनाता है यह कुंभ ।
हरिद्वार ,नासिक ,प्रयाग ,उज्जैन,
हर बारह वर्षों में दोहराता है यह कुंभ।

 

अपनी महत्ता की कथा पुरानी,
उस पल बतलाता है यह कुंभ ।
महर्षि दुर्वासा से इंद्र संग ,
श्रापित हुए थे सभी देव ।

 

था प्रभाव वह श्राप का,
जो दैत्यों से देव पराजित थे सभी ।
हो विवश शरण विष्णु की ,
जा पहुंँचे थे देव सभी ।

 

सुन प्रशांत प्रभु विष्णु ने थी ,
समुद्र मंथन की बात कही ।
देव व असुरों ने किया ,
समुद्र मंथन था तभी ।

 

समुद्र मंथन से निकलता था ,
अमृत का वो कलश ।
मंथन में फिर दिया साथ था,
मंदराचल पर्वत व वासु गाँठ ने ।

 

मंथन में निकले 14 रत्न ,
उसमें एक था अमृतकलश ।
देव और दानव के मध्य ,
अमृत को लेकर युद्ध छिड़ा।

 

वो युद्ध था इतना रौद्र की,
बारह वर्षों तक चला।
युद्ध मध्य जो अमृत की ,
बूंदे छलके थी कहीं-कहीं।

 

वही बारह वर्षों पर आज भी,
मनाया जाता है यह कुंभ।
हरिद्वार और प्रयाग में ,
अर्ध कुंभ भी दोहराते हैं ।

 

कुंभ का पूर्ण योग नहीं,
होता इस पल में ।
नहीं होता आगमन सभी ,
देवताओं का अर्ध कुंभ में ।

 

इसमें आते सूर्य ,चंद्र ,
और बृहस्पति देव ही ।
सनातन धर्म की पौराणिकता की ,
कथा याद दिलाता है यह कुंभ।

 

बारह वर्षों में एक बार ही,
आता है यह कुंभ ।
बारह वर्षों में एक बार ही ,
आता है यह कुंभ।।

 

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लेखिका :- पूनम शर्मा स्नेहिल

जमशेदपुर ( झारखण्ड )

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