लगाम नहीं है | Lagam Nahin hai
लगाम नहीं है!
( Lagam nahin hai )
है वो वनवास में लेकिन राम नहीं है,
बांसुरी बजाता है लेकिन श्याम नहीं है।
किराये के मकान में हम रहते हैं सभी,
पर आज की हवाओं में पैगाम नहीं है।
इंसानों के जंगल में बसंत नहीं आता,
क्योंकि वन की कटाई पे लगाम नहीं है।
दुनिया में जो कहर बरपाया है वायरस,
बेरोजगारों के हाथों को काम नहीं है।
छोटे- बड़े का अदब अब भूल रहे लोग,
अब जुबां पे वैसा दुआ -सलाम नहीं है।
छलकता है मदभरी उन आँख से जो,
पीनेवाले पीते हैं लेकिन जाम नहीं है।
मौत की आहट अब सुनाई नहीं देती,
क्योंकि पैसे के आगे विश्राम नहीं है।
कुशल निज़ाम रहकर भी क्या करेगा?
गर उसके पास मेहनती अवाम नहीं है।
आजादी के हवन -कुण्ड में हुए स्वाहा,
लेकिन इतिहास में उनका नाम नहीं है।
जंग का सौदा देता है तबाही को दावत,
यह तरक्की का कोई मुकाम नहीं है।
गलती यदि किए,तो भुगतना ही पड़ेगा,
ऊपरवाला वो तुम्हारा गुलाम नहीं है।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई